Good web design has visual weight, is optimized for various devices, and has content that is prioritized for the medium.
डॉ. बी.आर. अंबेडकर, जिन्हें बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास में एक महान व्यक्तित्व हैं। भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार होने से लेकर दलित वर्गों के लिए समानता और सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने तक, भारतीय समाज में उनके अपार योगदान को प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को भारत में भीमराव अंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। 14 अप्रैल 2024 को स्वतंत्र भारत के सबसे दूरदर्शी नेताओं में से एक डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के जन्मदिन के अवसर पर, NEXT IAS का यह लेख उनके जीवन का एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है, जिसमें उनके उल्लेखनीय योगदान, विरासत आदि को शामिल किया गया हैं।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर : एक संक्षिप्त परिचय
| जन्म तिथि | 14 अप्रैल 1891 |
| जन्म स्थान | महू (अब अंबेडकर नगर), मध्य प्रदेश |
| शिक्षा | मुंबई विश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय (न्यूयॉर्क), ग्रेज़ इन (लंदन), लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स |
| संगठन | इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, अनुसूचित जनजाति फेडरेशन, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया |
| मृत्यु | 6 दिसंबर 1956 |
| उपनाम | बाबासाहेब |
| सम्मान | भारतीय संविधान के निर्माता, दलितों के मसीहा, आधुनिक मनु |
| प्रमुख उपलब्धियाँ | – संविधान प्रारुप समिति के अध्यक्ष – स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री – वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री |
डॉ. अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. बी.आर. अंबेडकर के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा ने सामाजिक न्याय के लिए एक मुख्य नेतृत्वकर्त्ता एवं भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में उनके भविष्य की आधारशिला रखी।
उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को, मध्य प्रदेश के महू में, महार जाति में हुआ था। परंपरागत रूप से निम्न ग्रामीण सेवकों वाली जाति में जन्म लेने के कारण, उनकों अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में जातिगत भेदभाव की कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ा। बचपन में सामाजिक बहिष्कार और अपमान का सामना करने के उनके अनुभव ने उनमें जाति व्यवस्था के अन्याय के खिलाफ लड़ने का गहरा संकल्प पैदा कर दिया।
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की शैक्षणिक यात्रा मुंबई के एल्फिंस्टन हाई स्कूल से प्रारम्भ हुई, जहाँ वे पहले दलित छात्रों में से एक थे। भेदभाव का सामना करने के बावजूद, उन्होंने शैक्षणिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जो उन्हें एल्फिंस्टन कॉलेज से न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय तक ले गया। कोलंबिया विश्वविद्यालय उनके जीवन के लिए परिवर्तनकारी सिद्ध हुआ, वहां उन्होनें समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों के कार्यों के साथ-साथ स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों से अवगत हुए, जो बाद में उनके दृष्टिकोण का आधार बन गए।
वर्ष 1916 में, डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में अपनी पढ़ाई जारी रखने और ग्रेज इन (Gray’s Inn) में कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर के द्वारा दलित अधिकारों की वकालत
विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात्, डॉ. बी.आर. अंबेडकर वर्ष 1920 के दशक की शुरुआत में भारत लौट आए। उस समय भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक अन्याय भीमराव रामजी को जाति भेदभाव के उन्मूलन और हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष की राह पर ले गया।
बाबासाहेब का मानना था कि केवल पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व ही अछूतों की सामाजिक स्थिति में सुधार ला सकता है। इसलिए, उन्होंने अपने समाचार पत्रों, सामाजिक- सांस्कृतिक मंचों और सम्मेलनों के माध्यम से अछूतों को संगठित करना शुरू किया।
1924 में, डॉ. भीमराव रामजी ने दलितों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से बहिष्कृत हितकारी सभा (बहिष्कृतों के कल्याण के लिए समाज) की स्थापना की। उन्होंने दलितों की चिंताओं को आवाज देने के लिए “मूकनायक” (मूक के नेता), “बहिष्कृत भारत” (बहिष्कृत भारत) और “समता जनता” जैसे कई पत्रिकाएँ भी शुरू कीं।
बाबासाहेब अंबेडकर के नेतृत्व में किए गए पहले प्रमुख सार्वजनिक कार्यों में से एक 1927 का महाड़ सत्याग्रह था, जिसका उद्देश्य महाराष्ट्र के महाड़ में सार्वजनिक कुएं से जल का उपयोग करने के दलितों के अधिकारों को स्थापित करना था। इसी तरह, 1930 के कलाराम मंदिर आंदोलन का उद्देश्य दलितों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार सुरक्षित करना था।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर के द्वारा संघर्ष के लिए अपनाया गया मार्ग
सामाजिक सुधार के लिए कानूनी मार्गों के महत्त्व को पहचानते हुए, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भी ब्रिटिश अधिकारियों के सामने दलितों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने लंदन में गोलमेज सम्मेलनों में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया, और दलितों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की वकालत की। बाबासाहेब के प्रयासों का परिणाम 1932 के पूना पैक्ट के रूप में सामने आया, जिसने आम निर्वाचन क्षेत्रों में दलितों के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर का राजनीतिक जीवन
कई दशकों तक विस्तृत, डॉ. बी.आर. अंबेडकर की राजनीतिक यात्रा विधायक, पार्टी नेता, भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष और स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री जैसी भूमिकाओं से भरी रही हैं।
प्रारंभिक राजनीतिक व्यस्तताएँ
औपचारिक राजनीति में अपने पहले महत्त्वपूर्ण प्रयास के रूप में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने वर्ष 1936 में दलितों और मजदूर वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने 1937 के बॉम्बे प्रेसीडेंसी चुनावों में चुनाव लड़ा और कुछ सफलता भी प्राप्त की, जिसने बाबासाहेब को एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया।
दलितों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक केंद्रित राजनीतिक प्रयास की आवश्यकता को पहचानते हुए, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 1942 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी को अनुसूचित जाति संघ में बदल दिया। संघ का उद्देश्य स्पष्ट रूप से दलितों को राजनीतिक कार्रवाई के लिए संगठित करना था, हालाँकि इसने राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण चुनावी सफलता हासिल करने के लिए संघर्ष किया।
भारतीय संविधान का निर्माण
भारतीय राजनीति में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की सबसे स्थायी विरासत संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका है, जो भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने सुनिश्चित किया कि दस्तावेज में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत निहित हों। अस्पृश्यता के उन्मूलन और कुछ पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जैसे प्रावधानों को शामिल करना जातिगत भेदभाव और असमानता के खतरों से मुक्त स्वतंत्र भारत के उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर – वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री
1942-1946 के दौरान डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया। अपने कार्यकाल के दौरान, डॉ. भीमराव रामजी ने फैक्टरी अधिनियम 1946, ट्रेड यूनियन अधिनियम 1947 आदि सहित कई महत्त्वपूर्ण श्रम सुधारों को लागू किया और उनकी वकालत की।
उन्होंने श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की आधारशिला रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) निगम और कर्मचारी भविष्य निधि योजना (EPF) के निर्माण का सक्रिय रूप से समर्थन किया, जो क्रमशः चिकित्सा बीमा और सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करते हैं।
स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री
1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात्, डॉ. बी.आर. अंबेडकर को जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में देश के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। इस क्षमता में, उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान हिंदू कोड बिल की शुरुआत थी, जिसका उद्देश्य हिंदू मामलो के व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध एवं सुधार करना था, तथा महिलाओं को व्यक्तिगत मामलों में समान अधिकार देना था। हालाँकि, बिल को संसद द्वारा पारित नहीं किया जा सका, जिसके कारण वर्ष 1951 में बाबासाहेब ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
बाद की चुनावी राजनीति
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर के बाद के राजनीतिक प्रयासों में नव स्वतंत्र भारत में चुनावों के माध्यम से संसद में प्रवेश करने के उनके प्रयास शामिल थे। हालाँकि, उन्हें अपने राजनीतिक जीवन के इस चरण में अधिक सफलता नहीं मिल सकीं और उन्हें कई चुनावी हार का सामना करना पड़ा।
30 सितंबर 1956 को, बाबासाहेब ने अपने पूर्व संगठन अनुसूचित जाति संघ को बर्खास्त करके रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की घोषणा की। हालाँकि, नई पार्टी के गठन से पहले ही 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया।
बौद्ध धर्म को अपनाना और उसके बाद के वर्ष
सामाजिक न्याय और समानता की अपनी खोज में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की बौद्ध धर्म में रुचि उनके करियर की शुरुआत में ही प्रारम्भ हो गई थी, उन्होंने विभिन्न दर्शनों और धर्मों का अध्ययन किया था। 1935 में, येवला (नासिक) में आयोजित एक प्रांतीय सम्मेलन में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि – “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ था, लेकिन मैं हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा”।
14 अक्टूबर 1956 को, डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर ने नागपुर में आयोजित एक विशाल सार्वजनिक समारोह में औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लिया। उनका निर्णय केवल एक व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकल्प नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक और सामाजिक कार्य भी था, जिसका उद्देश्य हिंदू जाति व्यवस्था को अस्वीकार करना था। इसके बाद डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अपना शेष जीवन बौद्ध धर्म का प्रचार करने में लगाया।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर के धर्म परिवर्तन का भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसने दलितों के बीच बौद्ध धर्म में सामूहिक रूप से परिवर्तन का एक आंदोलन शुरू कर दिया, जिसे दलित बौद्ध आंदोलन के रूप में जाना जाता है, जो आज भी जारी है।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर का महत्त्वपूर्ण योगदान
डॉ. बी.आर. अंबेडकर का भारतीय समाज में योगदान विशाल और विविध है, जो एक समाज सुधारक, अर्थशास्त्री, राजनेता और कानूनी विद्वान के रूप में उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को दर्शाता है। उनके कुछ प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं:
- भारतीय संविधान के निर्माता: उनका सबसे स्थायी योगदान भारतीय संविधान का प्रारुप तैयार करना माना जाता है। प्रारुप समिति के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने भारतीय संविधान को इस तरह से आकार दिया कि भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित हो सके।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की परिकल्पना: डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की परिकल्पना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1925 में, उन्होंने भारतीय मुद्रा और वित्त पर रॉयल कमीशन (हिल्टन यंग कमीशन) के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत किए, जिसमें उन्होंने भारत के लिए एक केंद्रीय बैंकिंग प्रणाली की स्थापना का तर्क दिया।
- उनके विचारों ने आयोग की सिफारिशों को बहुत प्रभावित किया, जिसने RBI अधिनियम 1934 का आधार निर्मित किया – वह क़ानून जिसने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्थापना की।
- जाति भेदभाव के खिलाफ संघर्ष: अपने पूरे जीवन में उन्होंने दलितों और हाशिए पर रहने वाले समूहों के अधिकारों के लिए जोरदार अभियान चलाया, इस प्रकार उनके प्रयासों ने भारत में सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा दिया।
- सामाजिक सुधारक और शिक्षाविद्: शिक्षा की परिवर्तनकारी क्षमता को समझते हुए, बाबासाहेब ने दलितों के उत्थान के लिए शिक्षा के महत्त्व पर बल दिया। उन्होंने कॉलेजों की स्थापना की और दलित समुदाय को जाति एवं सामाजिक असमानता की बेड़ियों को तोड़ने के साधन के रूप में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।
- महिला अधिकारों के नेतृत्वकर्त्ता: डॉ. अंबेडकर महिला अधिकारों के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने उन हिंदूगत कानूनों में सुधार लाने की दिशा में कार्य किया, जिनमें महिलाओं के साथ भेदभाव किया गया था। उन्होंने हिंदू कोड बिल पेश किया, जिसका उद्देश्य विरासत, विवाह और तलाक के मामलों में महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करना था।
- श्रमिक सुधार: आधिकारिक पद संभालने से पहले ही, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अपने संगठन इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP) के माध्यम से श्रमिकों के अधिकारों और कल्याण की वकालत की। बाद में, वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में, उन्होंने भारत में श्रम सुधारों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- राजनीतिक नेतृत्व: राजनीति में अपने प्रवेश के माध्यम से डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने राजनीतिक नेतृत्व भी प्रदान किया।
- साहित्य और लेखन: डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर एक विपुल लेखक थे, तथा कानून, अर्थशास्त्र, धर्म और सामाजिक मुद्दों पर उनके कार्य अत्यधिक प्रभावशाली बने हुए हैं। उनकी पुस्तकें, जैसे “अस्पृश्यता का विनाश”, “शूद्र कौन थे?” एवं “बुद्ध और उनका धम्म”, दुनिया भर के पाठकों को प्रेरित करती रहती हैं।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विरासत
अपने असंख्य योगदानों के माध्यम से, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने देश के सामाजिक- सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य पर एक स्थायी छाप छोडी है। वर्तमान भारत में , उनकी विरासत को विभिन्न स्मारकों, संस्थानों और कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया जाता है। उनकी विरासत के कुछ प्रमुख प्रतीक इस प्रकार देखे जा सकते हैं:
- अंबेडकर जयंती: डॉ. बी.आर. अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को पूरे भारत में अंबेडकर जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस दिन, उनके जीवन और कार्यों का सम्मान करने के लिए राष्ट्रव्यापी स्मरण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
- मूर्तियाँ और स्मारक: डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की मूर्तियाँ पूरे भारत के शहरों और कस्बों में सार्वजनिक स्थानों को सुशोभित करती हैं। इसके अतिरिक्त, डॉ. अंबेडकर को समर्पित कई स्मारक, संग्रहालय और पुस्तकालय स्थापित किए गए हैं।
- राजनीति में प्रभाव: डॉ. अंबेडकर के विचार और सिद्धांत विभिन्न राजनीतिक दलों की नीतियों और विचारधाराओं को आकार देते रहें हैं। कई राजनीतिक दल, विशेष रूप से हाशिए के समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले दल, भीमराव रामजी अंबेडकर की विरासत को उनके उपदेशों को अपने राजनीतिक एजेंडों में शामिल करके श्रद्धांजलि देते हैं।
- आरक्षण नीतियाँ: डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की सामाजिक न्याय और सकारात्मक कार्रवाई की वकालत भारत की आरक्षण नीतियों में परिलक्षित होती है।
- साहित्य और कला: डॉ. अंबेडकर के जीवन और कार्य ने साहित्य, कला, संगीत और सिनेमा के एक समृद्ध जगत को प्रेरित किया है। उनके बारे में कई किताबें, आत्मकथाएँ, कविताएँ और नाटक लिखे गए हैं।
- जमीनी स्तर आंदोलन: भारत में दलित और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदाय समानता और सम्मान के अपने संघर्ष में उनके जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेते रहें हैं। अंबेडकरवादी आंदोलन इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
- शिक्षा और जागरूकता: डॉ. अंबेडकर के जीवन और विचारों के बारे में शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देने के प्रयास जारी हैं। स्कूल, कॉलेज और सामुदायिक संगठन उनके उपदेशों को प्रसारित करने और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए सेमिनार, कार्यशालाएं और अध्ययन मंडल आयोजित करते हैं।
- शैक्षणिक संस्थान: बाबासाहेब के नाम पर देश भर में डॉ. बी.आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय और कॉलेज स्थापित किए गए हैं।
बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अंबेडकर एक बहुआयामी भारतीय प्रतीक थे, जिनका जीवन और कार्य देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार देते रहते हैं। समाज के हाशिए से उठकर स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े नेताओं में से एक बनने का उनका सफर पीढ़ियों को प्रेरित करता रहा है।
सामान्यत: पूछे जाने वाले प्रश्न
डॉ. बी. आर. अंबेडकर का दर्शन क्या था?
बाबासाहेब अंबेडकर के दर्शन में सामाजिक न्याय, राजनीतिक सुधार और आर्थिक समानता सहित कई मुद्दे शामिल थे, जो लोकतंत्र, समानता और मानवाधिकारों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता पर आधारित थे।
अंबेडकर ने किस संगठन की शुरुआत की थी?
बाबासाहेब भीमराव ने समाज के वंचित वर्गों के कल्याण और अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए कई संगठनों की स्थापना की। उनमें से कुछ प्रमुख हैं – बहिष्कृत हितकारिणी सभा, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP), शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (SCF), रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) आदि।
अंबेडकर जी इतने प्रसिद्ध क्यों हैं?
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की प्रसिद्धि और स्थायी विरासत भारत में उनके बहुमुखी योगदान से उपजी है। हालाँकि, वह मुख्य रूप से भारत के संविधान का प्रारुप तैयार करने और दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रसिद्ध हैं।
Stet clita kasd gubergren, no sea takimata sanctus est Lorem ipsum dolor sit amet. no sea takimata sanctus est Lorem ipsum dolor sit amet. no sea takimata sanctus est Lorem ipsum dolor sit amet. sed diam voluptua.
- Light comes from all sorts of randomness void.
- It’s a blessing, but also a terrible defect sensational.
- Smart phones are a massive energy drain.
- Buy SmartMag for your successful site.
Clita kasd gubergren, no sea takimata sanctus est Lorem ipsum dolor sit amet. no sea takimata sanctus est Lorem ipsum dolor sit amet. no sea takimata sanctus est Lorem ipsum dolor sit amet. sed diam voluptua.








